
जानते हो सबकुछ,
पर अंजान बने हुए हो,
तुम हो मन के मालिक,
पर गुलाम बने हुए हो।
चलते हो रोज़ सफ़र पर,
कहीं पहुँचते नहीं हो,
जिस रात की ना सुबह हो,
वो शाम बने हुए हो।
पैमानों की जरूरत,
अब किसे है यहाँ पर,
जिसका उतरता नहीं नशा हो,
वो नाम बने हुए हो।
जब करते हैं बातें ख़ुद से,
तब होता है जिक्र तुम्हारा,
जो मिलकर भी कहीं मिले ना,
वो मुकाम बने हुए हो।
शायद वक्त भी रोक लेते,
तुम्हारे लिए हम लेकिन,
जो कभी खुलती नहीं हो
वो दुकान बने हुए हो।
अगर कभी वक्त मिले तो
आईने में ख़ुद को निहारना
ख़ुद से ही जो बेख़बर हो
वो अंजाम बने हुए हो।